नवदंपतिओं का स्वागत
(चौपाई)
करहिं आरती बारहिं बारा । प्रेमु प्रमोदु कहै को पारा ॥
भूषन मनि पट नाना जाती । करही निछावरि अगनित भाँती ॥१॥
बधुन्ह समेत देखि सुत चारी । परमानंद मगन महतारी ॥
पुनि पुनि सीय राम छबि देखी । मुदित सफल जग जीवन लेखी ॥२॥
सखीं सीय मुख पुनि पुनि चाही । गान करहिं निज सुकृत सराही ॥
बरषहिं सुमन छनहिं छन देवा । नाचहिं गावहिं लावहिं सेवा ॥३॥
देखि मनोहर चारिउ जोरीं । सारद उपमा सकल ढँढोरीं ॥
देत न बनहिं निपट लघु लागी । एकटक रहीं रूप अनुरागीं ॥४॥
(दोहा)
निगम नीति कुल रीति करि अरघ पाँवड़े देत।
बधुन्ह सहित सुत परिछि सब चलीं लवाइ निकेत ॥ ३४९ ॥