रानीयों द्वारा नवदंपतिओं का सत्कार
(चौपाई)
चारि सिंघासन सहज सुहाए । जनु मनोज निज हाथ बनाए ॥
तिन्ह पर कुअँरि कुअँर बैठारे । सादर पाय पुनित पखारे ॥१॥
धूप दीप नैबेद बेद बिधि । पूजे बर दुलहिनि मंगलनिधि ॥
बारहिं बार आरती करहीं । ब्यजन चारु चामर सिर ढरहीं ॥२॥
बस्तु अनेक निछावर होहीं । भरीं प्रमोद मातु सब सोहीं ॥
पावा परम तत्व जनु जोगीं । अमृत लहेउ जनु संतत रोगीं ॥३॥
जनम रंक जनु पारस पावा । अंधहि लोचन लाभु सुहावा ॥
मूक बदन जनु सारद छाई । मानहुँ समर सूर जय पाई ॥४॥
(दोहा)
एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु ॥
भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु ॥ ३५०(क) ॥
लोक रीत जननी करहिं बर दुलहिनि सकुचाहिं।
मोदु बिनोदु बिलोकि बड़ रामु मनहिं मुसकाहिं ॥ ३५०(ख) ॥