महाराजा दशरथ द्वारा विश्वामित्र का पूजन
(चौपाई)
जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्ही । लोक बेद बिधि सादर कीन्ही ॥
भूसुर भीर देखि सब रानी । सादर उठीं भाग्य बड़ जानी ॥१॥
पाय पखारि सकल अन्हवाए । पूजि भली बिधि भूप जेवाँए ॥
आदर दान प्रेम परिपोषे । देत असीस चले मन तोषे ॥२॥
बहु बिधि कीन्हि गाधिसुत पूजा । नाथ मोहि सम धन्य न दूजा ॥
कीन्हि प्रसंसा भूपति भूरी । रानिन्ह सहित लीन्हि पग धूरी ॥३॥
भीतर भवन दीन्ह बर बासु । मन जोगवत रह नृप रनिवासू ॥
पूजे गुर पद कमल बहोरी । कीन्हि बिनय उर प्रीति न थोरी ॥४॥
(दोहा)
बधुन्ह समेत कुमार सब रानिन्ह सहित महीसु।
पुनि पुनि बंदत गुर चरन देत असीस मुनीसु ॥ ३५२ ॥