महाराजा दशरथ द्वारा विश्वामित्र का पूजन
(चौपाई)
सब बिधि सबहि समदि नरनाहू । रहा हृदयँ भरि पूरि उछाहू ॥
जहँ रनिवासु तहाँ पगु धारे । सहित बहूटिन्ह कुअँर निहारे ॥१॥
लिए गोद करि मोद समेता । को कहि सकइ भयउ सुखु जेता ॥
बधू सप्रेम गोद बैठारीं । बार बार हियँ हरषि दुलारीं ॥२॥
देखि समाजु मुदित रनिवासू । सब कें उर अनंद कियो बासू ॥
कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू । सुनि हरषु होत सब काहू ॥३॥
जनक राज गुन सीलु बड़ाई । प्रीति रीति संपदा सुहाई ॥
बहुबिधि भूप भाट जिमि बरनी । रानीं सब प्रमुदित सुनि करनी ॥४॥
(दोहा)
सुतन्ह समेत नहाइ नृप बोलि बिप्र गुर ग्याति ।
भोजन कीन्ह अनेक बिधि घरी पंच गइ राति ॥ ३५४ ॥