रामचरितमानस कथा की तुलना
(चौपाई)
जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई । जातहिं नींद जुड़ाई होई ॥
जड़ता जाड़ बिषम उर लागा । गएहुँ न मज्जन पाव अभागा ॥१॥
करि न जाइ सर मज्जन पाना । फिरि आवइ समेत अभिमाना ॥
जौं बहोरि कोउ पूछन आवा । सर निंदा करि ताहि बुझावा ॥२॥
सकल बिघ्न ब्यापहि नहिं तेही । राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही ॥
सोइ सादर सर मज्जनु करई । महा घोर त्रयताप न जरई ॥३॥
ते नर यह सर तजहिं न काऊ । जिन्ह के राम चरन भल भाऊ ॥
जो नहाइ चह एहिं सर भाई । सो सतसंग करउ मन लाई ॥४॥
अस मानस मानस चख चाही । भइ कबि बुद्धि बिमल अवगाही ॥
भयउ हृदयँ आनंद उछाहू । उमगेउ प्रेम प्रमोद प्रबाहू ॥५॥
चली सुभग कबिता सरिता सो । राम बिमल जस जल भरिता सो ॥
सरजू नाम सुमंगल मूला । लोक बेद मत मंजुल कूला ॥ ६ ॥
नदी पुनीत सुमानस नंदिनि । कलिमल तृन तरु मूल निकंदिनि ॥७॥
(दोहा)
श्रोता त्रिबिध समाज पुर ग्राम नगर दुहुँ कूल ।
संतसभा अनुपम अवध सकल सुमंगल मूल ॥ ३९ ॥