भरद्वाज अपना संशय व्यक्त करते है
(चौपाई)
अस बिचारि प्रगटउँ निज मोहू । हरहु नाथ करि जन पर छोहू ॥
रास नाम कर अमित प्रभावा । संत पुरान उपनिषद गावा ॥१॥
संतत जपत संभु अबिनासी । सिव भगवान ग्यान गुन रासी ॥
आकर चारि जीव जग अहहीं । कासीं मरत परम पद लहहीं ॥२॥
सोपि राम महिमा मुनिराया । सिव उपदेसु करत करि दाया ॥
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही । कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही ॥३॥
एक राम अवधेस कुमारा । तिन्ह कर चरित बिदित संसारा ॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा । भयहु रोषु रन रावनु मारा ॥४॥
(दोहा)
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि ।
सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि ॥ ४६ ॥