Thursday, 5 December, 2024

Bharat reach Ayodhya

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भरत अयोध्या पहूँचा
 
हाट बाट नहिं जाइ निहारी । जनु पुर दहँ दिसि लागि दवारी ॥
आवत सुत सुनि कैकयनंदिनि । हरषी रबिकुल जलरुह चंदिनि ॥१॥
 
सजि आरती मुदित उठि धाई । द्वारेहिं भेंटि भवन लेइ आई ॥
भरत दुखित परिवारु निहारा । मानहुँ तुहिन बनज बनु मारा ॥२॥
 
कैकेई हरषित एहि भाँति । मनहुँ मुदित दव लाइ किराती ॥
सुतहि ससोच देखि मनु मारें । पूँछति नैहर कुसल हमारें ॥३॥
 
सकल कुसल कहि भरत सुनाई । पूँछी निज कुल कुसल भलाई ॥
कहु कहँ तात कहाँ सब माता । कहँ सिय राम लखन प्रिय भ्राता ॥४॥
 
(दोहा)  
सुनि सुत बचन सनेहमय कपट नीर भरि नैन ।
भरत श्रवन मन सूल सम पापिनि बोली बैन ॥ १५९ ॥

 

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