Thursday, 14 November, 2024

Bharat reach Prayag

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भरत प्रयागराज पहूँचा
 
कियउ निषादनाथु अगुआईं । मातु पालकीं सकल चलाईं ॥
साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा । बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा ॥१॥
 
आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू । सुमिरे लखन सहित सिय रामू ॥
गवने भरत पयोदेहिं पाए । कोतल संग जाहिं डोरिआए ॥२॥
 
कहहिं सुसेवक बारहिं बारा । होइअ नाथ अस्व असवारा ॥
रामु पयोदेहि पायँ सिधाए । हम कहँ रथ गज बाजि बनाए ॥३॥
 
सिर भर जाउँ उचित अस मोरा । सब तें सेवक धरमु कठोरा ॥
देखि भरत गति सुनि मृदु बानी । सब सेवक गन गरहिं गलानी ॥४॥
 
(दोहा)
भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग ।
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ॥ २०३ ॥

 

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