Saturday, 16 November, 2024

Bharat see ominous signs

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भरत को अपशुकन हुए
 
चले समीर बेग हय हाँके । नाघत सरित सैल बन बाँके ॥
हृदयँ सोचु बड़ कछु न सोहाई । अस जानहिं जियँ जाउँ उड़ाई ॥१॥
 
एक निमेष बरस सम जाई । एहि बिधि भरत नगर निअराई ॥
असगुन होहिं नगर पैठारा । रटहिं कुभाँति कुखेत करारा ॥२॥
 
खर सिआर बोलहिं प्रतिकूला । सुनि सुनि होइ भरत मन सूला ॥
श्रीहत सर सरिता बन बागा । नगरु बिसेषि भयावनु लागा ॥३॥
 
खग मृग हय गय जाहिं न जोए । राम बियोग कुरोग बिगोए ॥
नगर नारि नर निपट दुखारी । मनहुँ सबन्हि सब संपति हारी ॥४॥
 
(दोहा)  
पुरजन मिलिहिं न कहहिं कछु गवँहिं जोहारहिं जाहिं ।
भरत कुसल पूँछि न सकहिं भय बिषाद मन माहिं ॥ १५८ ॥

 

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