ब्राह्मणों ने राजा को शाप दिया
(चौपाई)
छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई । घालै लिए सहित समुदाई ॥
ईस्वर राखा धरम हमारा । जैहसि तैं समेत परिवारा ॥१॥
संबत मध्य नास तव होऊ । जलदाता न रहिहि कुल कोऊ ॥
नृप सुनि श्राप बिकल अति त्रासा । भै बहोरि बर गिरा अकासा ॥२॥
बिप्रहु श्राप बिचारि न दीन्हा । नहिं अपराध भूप कछु कीन्हा ॥
चकित बिप्र सब सुनि नभबानी । भूप गयउ जहँ भोजन खानी ॥३॥
तहँ न असन नहिं बिप्र सुआरा । फिरेउ राउ मन सोच अपारा ॥
सब प्रसंग महिसुरन्ह सुनाई । त्रसित परेउ अवनीं अकुलाई ॥४॥
(दोहा)
भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि न दूषन तोर ।
किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर ॥ १७४ ॥