भविष्यकथन की प्रतिक्रिया
(चौपाई)
सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी । दुख दंपतिहि उमा हरषानी ॥
नारदहुँ यह भेदु न जाना । दसा एक समुझब बिलगाना ॥१॥
सकल सखीं गिरिजा गिरि मैना । पुलक सरीर भरे जल नैना ॥
होइ न मृषा देवरिषि भाषा । उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा ॥२॥
उपजेउ सिव पद कमल सनेहू । मिलन कठिन मन भा संदेहू ॥
जानि कुअवसरु प्रीति दुराई । सखी उछँग बैठी पुनि जाई ॥३॥
झूठि न होइ देवरिषि बानी । सोचहि दंपति सखीं सयानी ॥
उर धरि धीर कहइ गिरिराऊ । कहहु नाथ का करिअ उपाऊ ॥४॥
(दोहा)
कह मुनीस हिमवंत सुनु जो बिधि लिखा लिलार ।
देव दनुज नर नाग मुनि कोउ न मेटनिहार ॥ ६८ ॥