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उमा का प्रारब्धविधान एक सुखद संयोग – नारद का आश्वासन
(चौपाई)
तदपि एक मैं कहउँ उपाई । होइ करै जौं दैउ सहाई ॥
जस बरु मैं बरनेउँ तुम्ह पाहीं । मिलहि उमहि तस संसय नाहीं ॥१॥
जे जे बर के दोष बखाने । ते सब सिव पहि मैं अनुमाने ॥
जौं बिबाहु संकर सन होई । दोषउ गुन सम कह सबु कोई ॥२॥
जौं अहि सेज सयन हरि करहीं । बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं ॥
भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं । तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं ॥३॥
सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई । सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई ॥
समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई । रबि पावक सुरसरि की नाई ॥४॥
(दोहा)
जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान ।
परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान ॥ ६९ ॥