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दूत महाराजा दशरथ को राम की पराक्रमगाथा सुनाता है
(चौपाई)
पूछन जोगु न तनय तुम्हारे । पुरुषसिंघ तिहु पुर उजिआरे ॥
जिन्ह के जस प्रताप कें आगे । ससि मलीन रबि सीतल लागे ॥१॥
तिन्ह कहँ कहिअ नाथ किमि चीन्हे । देखिअ रबि कि दीप कर लीन्हे ॥
सीय स्वयंबर भूप अनेका । समिटे सुभट एक तें एका ॥२॥
संभु सरासनु काहुँ न टारा । हारे सकल बीर बरिआरा ॥
तीनि लोक महँ जे भटमानी । सभ कै सकति संभु धनु भानी ॥३॥
सकइ उठाइ सरासुर मेरू । सोउ हियँ हारि गयउ करि फेरू ॥
जेहि कौतुक सिवसैलु उठावा । सोउ तेहि सभाँ पराभउ पावा ॥४॥
(दोहा)
तहाँ राम रघुबंस मनि सुनिअ महा महिपाल ।
भंजेउ चाप प्रयास बिनु जिमि गज पंकज नाल ॥ २९२ ॥