श्रीराम और सुग्रीव के बीच मैत्री
देखि पवन सुत पति अनुकूला । हृदयँ हरष बीती सब सूला ॥
नाथ सैल पर कपिपति रहई । सो सुग्रीव दास तव अहई ॥ १॥
तेहि सन नाथ मयत्री कीजे । दीन जानि तेहि अभय करीजे ॥
सो सीता कर खोज कराइहि । जहँ तहँ मरकट कोटि पठाइहि ॥२॥
एहि बिधि सकल कथा समुझाई । लिए दुऔ जन पीठि चढ़ाई ॥
जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा । अतिसय जन्म धन्य करि लेखा ॥३॥
सादर मिलेउ नाइ पद माथा । भैंटेउ अनुज सहित रघुनाथा ॥
कपि कर मन बिचार एहि रीती । करिहहिं बिधि मो सन ए प्रीती ॥४॥
(दोहा)
तब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाइ ।
पावक साखी देइ करि जोरी प्रीती दृढ़ाइ ॥ ४ ॥