भवानी का सीता को आशीर्वाद
(चौपाई)
सेवत तोहि सुलभ फल चारी । बरदायनी पुरारि पिआरी ॥
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे । सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे ॥१॥
मोर मनोरथु जानहु नीकें । बसहु सदा उर पुर सबही कें ॥
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं । अस कहि चरन गहे बैदेहीं ॥२॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी । खसी माल मूरति मुसुकानी ॥
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ । बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ ॥३॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी । पूजिहि मन कामना तुम्हारी ॥
नारद बचन सदा सुचि साचा । सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा ॥४॥
(छंद)
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो ।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥
(सोरठा)
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥ २३६ ॥