हनुमानजी विभीषण के घर जा पहूँचे
लंका निसिचर निकर निवासा । इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा ॥
मन महुँ तरक करैं कपि लागा । तेहीं समय बिभीषनु जागा ॥१॥
Lanka nisichar nikar nivaasa Iha kaha sajjan kar baasa ।
Man mahu tarak karai kapi laaga Tehi samay Bibheeshanu jaaga ॥
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा । हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा ॥
एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी । साधु ते होइ न कारज हानी ॥२॥
Raam raam tehi sumiran keenha Hriday harash kapi sajjan cheenha ।
Ehi san hathi karihau pahichaanee Saadhu te hoi na kaaraj haanee ॥
बिप्र रूप धरि बचन सुनाए । सुनत बिभीषन उठि तहँ आए ॥
करि प्रनाम पूँछी कुसलाई । बिप्र कहहु निज कथा बुझाई ॥३॥
Bipra roop dhari bachan sunaae Sunat Bibheeshan uthi tah aae ।
Kari pranaam poonchee kusalaai Bipra kahahu nij katha buzaai ॥
की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई । मोरें हृदय प्रीति अति होई ॥
की तुम्ह रामु दीन अनुरागी । आयहु मोहि करन बड़भागी ॥४॥
Kee tumh hari daasanh mah koi More hriday preeti ati hoi ।
Kee tumh raamu deen anuraagee Aayahu mohi karan badbhaagee ॥
(दोहा)
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम ।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥ ६ ॥
Tab Hanumant kahee sab Raam katha nij naam ।
Sunat jugal tan pulak man magan sumiri gun graam ॥