हिरण्यकशिपु का रावण के रूप में पूनर्जन्म
(चौपाई)
मुकुत न भए हते भगवाना । तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना ॥
एक बार तिन्ह के हित लागी । धरेउ सरीर भगत अनुरागी ॥१॥
कस्यप अदिति तहाँ पितु माता । दसरथ कौसल्या बिख्याता ॥
एक कलप एहि बिधि अवतारा । चरित्र पवित्र किए संसारा ॥२॥
एक कलप सुर देखि दुखारे । समर जलंधर सन सब हारे ॥
संभु कीन्ह संग्राम अपारा । दनुज महाबल मरइ न मारा ॥३॥
परम सती असुराधिप नारी । तेहि बल ताहि न जितहिं पुरारी ॥४॥
(दोहा)
छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह ॥
जब तेहि जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह ॥ १२३ ॥