जामवंत ने रावण के पास दूत भेजने की सलाह दी
इहाँ प्रात जागे रघुराई । पूछा मत सब सचिव बोलाई ॥
कहहु बेगि का करिअ उपाई । जामवंत कह पद सिरु नाई ॥१॥
सुनु सर्बग्य सकल उर बासी । बुधि बल तेज धर्म गुन रासी ॥
मंत्र कहउँ निज मति अनुसारा । दूत पठाइअ बालिकुमारा ॥२॥
नीक मंत्र सब के मन माना । अंगद सन कह कृपानिधाना ॥
बालितनय बुधि बल गुन धामा । लंका जाहु तात मम कामा ॥३॥
बहुत बुझाइ तुम्हहि का कहऊँ । परम चतुर मैं जानत अहऊँ ॥
काजु हमार तासु हित होई । रिपु सन करेहु बतकही सोई ॥४॥
(सोरठा)
प्रभु अग्या धरि सीस चरन बंदि अंगद उठेउ ।
सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा पर करहु ॥ १७(क) ॥
स्वयं सिद्ध सब काज नाथ मोहि आदरु दियउ ।
अस बिचारि जुबराज तन पुलकित हरषित हियउ ॥ १७(ख) ॥