महाराजा जनक दहेज में अनेक कीमती चिजें देतें है
(चौपाई)
पुरबासी सुनि चलिहि बराता । बूझत बिकल परस्पर बाता ॥
सत्य गवनु सुनि सब बिलखाने । मनहुँ साँझ सरसिज सकुचाने ॥१॥
जहँ जहँ आवत बसे बराती । तहँ तहँ सिद्ध चला बहु भाँती ॥
बिबिध भाँति मेवा पकवाना । भोजन साजु न जाइ बखाना ॥२॥
भरि भरि बसहँ अपार कहारा । पठई जनक अनेक सुसारा ॥
तुरग लाख रथ सहस पचीसा । सकल सँवारे नख अरु सीसा ॥३॥
मत्त सहस दस सिंधुर साजे । जिन्हहि देखि दिसिकुंजर लाजे ॥
कनक बसन मनि भरि भरि जाना । महिषीं धेनु बस्तु बिधि नाना ॥४॥
(दोहा)
दाइज अमित न सकिअ कहि दीन्ह बिदेहँ बहोरि ।
जो अवलोकत लोकपति लोक संपदा थोरि ॥ ३३३ ॥