Wednesday, 6 November, 2024

Janak meet Sita

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महाराजा जनक सीता को मिलते है
 
प्रिय परिजनहि मिली बैदेही । जो जेहि जोगु भाँति तेहि तेही ॥
तापस बेष जानकी देखी । भा सबु बिकल बिषाद बिसेषी ॥१॥
 
जनक राम गुर आयसु पाई । चले थलहि सिय देखी आई ॥
लीन्हि लाइ उर जनक जानकी । पाहुन पावन पेम प्रान की ॥२॥
 
उर उमगेउ अंबुधि अनुरागू । भयउ भूप मनु मनहुँ पयागू ॥
सिय सनेह बटु बाढ़त जोहा । ता पर राम पेम सिसु सोहा ॥३॥
 
चिरजीवी मुनि ग्यान बिकल जनु । बूड़त लहेउ बाल अवलंबनु ॥
मोह मगन मति नहिं बिदेह की । महिमा सिय रघुबर सनेह की ॥४॥
 
(दोहा)   
सिय पितु मातु सनेह बस बिकल न सकी सँभारि ।
धरनिसुताँ धीरजु धरेउ समउ सुधरमु बिचारि ॥ २८६ ॥

 

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