Sunday, 8 September, 2024

Janak send off his daughters

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महाराजा जनक सीता और सभी पुत्रीओं को बिदा करते है
 
(चौपाई)
सुक सारिका जानकी ज्याए। कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए ॥
ब्याकुल कहहिं कहाँ बैदेही। सुनि धीरजु परिहरइ न केही ॥१॥
 
भए बिकल खग मृग एहि भाँति। मनुज दसा कैसें कहि जाती ॥
बंधु समेत जनकु तब आए। प्रेम उमगि लोचन जल छाए ॥२॥
 
सीय बिलोकि धीरता भागी। रहे कहावत परम बिरागी ॥
लीन्हि राँय उर लाइ जानकी। मिटी महामरजाद ग्यान की ॥३॥
 
समुझावत सब सचिव सयाने। कीन्ह बिचारु न अवसर जाने ॥
बारहिं बार सुता उर लाई। सजि सुंदर पालकीं मगाई ॥४॥
 
(दोहा)
प्रेमबिबस परिवारु सबु जानि सुलगन नरेस।
कुँअरि चढ़ाई पालकिन्ह सुमिरे सिद्धि गनेस ॥ ३३८ ॥

 

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