कालकेतु का आगमन
(चौपाई)
सयन कीन्ह नृप आयसु मानी । आसन जाइ बैठ छलग्यानी ॥
श्रमित भूप निद्रा अति आई । सो किमि सोव सोच अधिकाई ॥१॥
कालकेतु निसिचर तहँ आवा । जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा ॥
परम मित्र तापस नृप केरा । जानइ सो अति कपट घनेरा ॥२॥
तेहि के सत सुत अरु दस भाई । खल अति अजय देव दुखदाई ॥
प्रथमहि भूप समर सब मारे । बिप्र संत सुर देखि दुखारे ॥३॥
तेहिं खल पाछिल बयरु सँभरा । तापस नृप मिलि मंत्र बिचारा ॥
जेहि रिपु छय सोइ रचेन्हि उपाऊ । भावी बस न जान कछु राऊ ॥४॥
(दोहा)
रिपु तेजसी अकेल अपि लघु करि गनिअ न ताहु ।
अजहुँ देत दुख रबि ससिहि सिर अवसेषित राहु ॥ १७० ॥