युद्ध का वर्णन
कर सारंग साजि कटि भाथा । अरि दल दलन चले रघुनाथा ॥
प्रथम कीन्ह प्रभु धनुष टँकोरा । रिपु दल बधिर भयउ सुनि सोरा ॥१॥
सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा । कालसर्प जनु चले सपच्छा ॥
जहँ तहँ चले बिपुल नाराचा । लगे कटन भट बिकट पिसाचा ॥२॥
कटहिं चरन उर सिर भुजदंडा । बहुतक बीर होहिं सत खंडा ॥
घुर्मि घुर्मि घायल महि परहीं । उठि संभारि सुभट पुनि लरहीं ॥३॥
लागत बान जलद जिमि गाजहीं । बहुतक देखी कठिन सर भाजहिं ॥
रुंड प्रचंड मुंड बिनु धावहिं । धरु धरु मारू मारु धुनि गावहिं ॥४॥
(दोहा)
छन महुँ प्रभु के सायकन्हि काटे बिकट पिसाच ।
पुनि रघुबीर निषंग महुँ प्रबिसे सब नाराच ॥ ६८ ॥