Sunday, 17 November, 2024

Lanka Kand Doha 68

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Lanka Kand  							Doha 68

Lanka Kand Doha 68

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युद्ध का वर्णन
 
कर सारंग साजि कटि भाथा । अरि दल दलन चले रघुनाथा ॥
प्रथम कीन्ह प्रभु धनुष टँकोरा । रिपु दल बधिर भयउ सुनि सोरा ॥१॥
 
सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा । कालसर्प जनु चले सपच्छा ॥
जहँ तहँ चले बिपुल नाराचा । लगे कटन भट बिकट पिसाचा ॥२॥
 
कटहिं चरन उर सिर भुजदंडा । बहुतक बीर होहिं सत खंडा ॥
घुर्मि घुर्मि घायल महि परहीं । उठि संभारि सुभट पुनि लरहीं ॥३॥
 
लागत बान जलद जिमि गाजहीं । बहुतक देखी कठिन सर भाजहिं ॥
रुंड प्रचंड मुंड बिनु धावहिं । धरु धरु मारू मारु धुनि गावहिं ॥४॥
 
(दोहा)
छन महुँ प्रभु के सायकन्हि काटे बिकट पिसाच ।
पुनि रघुबीर निषंग महुँ प्रबिसे सब नाराच ॥ ६८ ॥

 

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