Monday, 4 November, 2024

Lanka Kand Doha 70

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Lanka Kand  							Doha 70

Lanka Kand Doha 70

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युद्ध का वर्णन
 
भागे भालु बलीमुख जूथा । बृकु बिलोकि जिमि मेष बरूथा ॥
चले भागि कपि भालु भवानी । बिकल पुकारत आरत बानी ॥१॥
 
यह निसिचर दुकाल सम अहई । कपिकुल देस परन अब चहई ॥
कृपा बारिधर राम खरारी । पाहि पाहि प्रनतारति हारी ॥२॥
 
सकरुन बचन सुनत भगवाना । चले सुधारि सरासन बाना ॥
राम सेन निज पाछैं घाली । चले सकोप महा बलसाली ॥३॥
 
खैंचि धनुष सर सत संधाने । छूटे तीर सरीर समाने ॥
लागत सर धावा रिस भरा । कुधर डगमगत डोलति धरा ॥४॥
 
लीन्ह एक तेहिं सैल उपाटी । रघुकुल तिलक भुजा सोइ काटी ॥
धावा बाम बाहु गिरि धारी । प्रभु सोउ भुजा काटि महि पारी ॥५॥
 
काटें भुजा सोह खल कैसा । पच्छहीन मंदर गिरि जैसा ॥
उग्र बिलोकनि प्रभुहि बिलोका । ग्रसन चहत मानहुँ त्रेलोका ॥६॥
 
(दोहा)
करि चिक्कार घोर अति धावा बदनु पसारि ।
गगन सिद्ध सुर त्रासित हा हा हेति पुकारि ॥ ७० ॥

 

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