Sunday, 17 November, 2024

Lanka Kand Doha 88

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Lanka Kand  							Doha 88

Lanka Kand Doha 88

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युद्ध का वर्णन
 
मज्जहि भूत पिसाच बेताला । प्रमथ महा झोटिंग कराला ॥
काक कंक लै भुजा उड़ाहीं । एक ते छीनि एक लै खाहीं ॥१॥
 
एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई । सठहु तुम्हार दरिद्र न जाई ॥
कहँरत भट घायल तट गिरे । जहँ तहँ मनहुँ अर्धजल परे ॥२॥
 
खैंचहिं गीध आँत तट भए । जनु बंसी खेलत चित दए ॥
बहु भट बहहिं चढ़े खग जाहीं । जनु नावरि खेलहिं सरि माहीं ॥३॥
 
जोगिनि भरि भरि खप्पर संचहिं । भूत पिसाच बधू नभ नंचहिं ॥
भट कपाल करताल बजावहिं । चामुंडा नाना बिधि गावहिं ॥४॥
 
जंबुक निकर कटक्कट कट्टहिं । खाहिं हुआहिं अघाहिं दपट्टहिं ॥
कोटिन्ह रुंड मुंड बिनु डोल्लहिं । सीस परे महि जय जय बोल्लहिं ॥५॥
 
(छंद)
बोल्लहिं जो जय जय मुंड रुंड प्रचंड सिर बिनु धावहीं ।
खप्परिन्ह खग्ग अलुज्झि जुज्झहिं सुभट भटन्ह ढहावहीं ॥
बानर निसाचर निकर मर्दहिं राम बल दर्पित भए ।
संग्राम अंगन सुभट सोवहिं राम सर निकरन्हि हए ॥
 
(दोहा)
रावन हृदयँ बिचारा भा निसिचर संघार ।
मैं अकेल कपि भालु बहु माया करौं अपार ॥ ८८ ॥

 

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