Sunday, 8 September, 2024

Laxman’s thinking

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लक्ष्मण के विचार
 
अस बिचारि नहिं कीजा रोसू । काहुहि बादि न देइअ दोसू ॥
मोह निसाँ सबु सोवनिहारा । देखिअ सपन अनेक प्रकारा ॥१॥
 
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी । परमारथी प्रपंच बियोगी ॥
जानिअ तबहिं जीव जग जागा । जब जब बिषय बिलास बिरागा ॥२॥
 
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा । तब रघुनाथ चरन अनुरागा ॥
सखा परम परमारथु एहू । मन क्रम बचन राम पद नेहू ॥३॥
 
राम ब्रह्म परमारथ रूपा । अबिगत अलख अनादि अनूपा ॥
सकल बिकार रहित गतभेदा । कहि नित नेति निरूपहिं बेदा ॥४॥  
 
(दोहा)   
भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल ।
करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल ॥ ९३ ॥
 
॥ मासपारायण, पंद्रहवा विश्राम ॥

 

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