Laxman’s thinking
By-Gujju01-05-2023
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लक्ष्मण के विचार
अस बिचारि नहिं कीजा रोसू । काहुहि बादि न देइअ दोसू ॥
मोह निसाँ सबु सोवनिहारा । देखिअ सपन अनेक प्रकारा ॥१॥
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी । परमारथी प्रपंच बियोगी ॥
जानिअ तबहिं जीव जग जागा । जब जब बिषय बिलास बिरागा ॥२॥
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा । तब रघुनाथ चरन अनुरागा ॥
सखा परम परमारथु एहू । मन क्रम बचन राम पद नेहू ॥३॥
राम ब्रह्म परमारथ रूपा । अबिगत अलख अनादि अनूपा ॥
सकल बिकार रहित गतभेदा । कहि नित नेति निरूपहिं बेदा ॥४॥
(दोहा)
भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल ।
करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल ॥ ९३ ॥
॥ मासपारायण, पंद्रहवा विश्राम ॥