श्रीहरि ने देवताओं को आश्वासन देकर दैत्यों के नाश का भरोसा दिलाया
(चौपाई)
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा । तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा ॥
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा । लेहउँ दिनकर बंस उदारा ॥१॥
कस्यप अदिति महातप कीन्हा । तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा ॥
ते दसरथ कौसल्या रूपा । कोसलपुरीं प्रगट नरभूपा ॥२॥
तिन्ह के गृह अवतरिहउँ जाई । रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई ॥
नारद बचन सत्य सब करिहउँ । परम सक्ति समेत अवतरिहउँ ॥३॥
हरिहउँ सकल भूमि गरुआई । निर्भय होहु देव समुदाई ॥
गगन ब्रह्मबानी सुनी काना । तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना ॥४॥
तब ब्रह्मा धरनिहि समुझावा । अभय भई भरोस जियँ आवा ॥५॥
(दोहा)
निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ ।
बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ ॥ १८७ ॥