भगवान विष्णु ने नारद के गर्वखंडन की योजना बनाई
(चौपाई)
सुनु मुनि मोह होइ मन ताकें । ग्यान बिराग हृदय नहिं जाके ॥
ब्रह्मचरज ब्रत रत मतिधीरा । तुम्हहि कि करइ मनोभव पीरा ॥१॥
नारद कहेउ सहित अभिमाना । कृपा तुम्हारि सकल भगवाना ॥
करुनानिधि मन दीख बिचारी । उर अंकुरेउ गरब तरु भारी ॥२॥
बेगि सो मै डारिहउँ उखारी । पन हमार सेवक हितकारी ॥
मुनि कर हित मम कौतुक होई । अवसि उपाय करबि मै सोई ॥३॥
तब नारद हरि पद सिर नाई । चले हृदयँ अहमिति अधिकाई ॥
श्रीपति निज माया तब प्रेरी । सुनहु कठिन करनी तेहि केरी ॥४॥
(दोहा)
बिरचेउ मग महुँ नगर तेहिं सत जोजन बिस्तार ।
श्रीनिवासपुर तें अधिक रचना बिबिध प्रकार ॥ १२९ ॥