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नारदजी की विश्वमोहिनी से भेंट
(चौपाई)
बसहिं नगर सुंदर नर नारी । जनु बहु मनसिज रति तनुधारी ॥
तेहिं पुर बसइ सीलनिधि राजा । अगनित हय गय सेन समाजा ॥१॥
सत सुरेस सम बिभव बिलासा । रूप तेज बल नीति निवासा ॥
बिस्वमोहनी तासु कुमारी । श्री बिमोह जिसु रूपु निहारी ॥२॥
सोइ हरिमाया सब गुन खानी । सोभा तासु कि जाइ बखानी ॥
करइ स्वयंबर सो नृपबाला । आए तहँ अगनित महिपाला ॥३॥
मुनि कौतुकी नगर तेहिं गयऊ । पुरबासिन्ह सब पूछत भयऊ ॥
सुनि सब चरित भूपगृहँ आए । करि पूजा नृप मुनि बैठाए ॥४॥
(दोहा)
आनि देखाई नारदहि भूपति राजकुमारि ।
कहहु नाथ गुन दोष सब एहि के हृदयँ बिचारि ॥ १३० ॥