माल्यवंत ने रावण को श्रीराम के साथ संधि करने की सलाह दी
निसा जानि कपि चारिउ अनी । आए जहाँ कोसला धनी ॥
राम कृपा करि चितवा सबही । भए बिगतश्रम बानर तबही ॥१॥
उहाँ दसानन सचिव हँकारे । सब सन कहेसि सुभट जे मारे ॥
आधा कटकु कपिन्ह संघारा । कहहु बेगि का करिअ बिचारा ॥२॥
माल्यवंत अति जरठ निसाचर । रावन मातु पिता मंत्री बर ॥
बोला बचन नीति अति पावन । सुनहु तात कछु मोर सिखावन ॥३॥
जब ते तुम्ह सीता हरि आनी । असगुन होहिं न जाहिं बखानी ॥
बेद पुरान जासु जसु गायो । राम बिमुख काहुँ न सुख पायो ॥४॥
(दोहा)
हिरन्याच्छ भ्राता सहित मधु कैटभ बलवान ।
जेहि मारे सोइ अवतरेउ कृपासिंधु भगवान ॥ ४८(क) ॥
कालरूप खल बन दहन गुनागार घनबोध ।
सिव बिरंचि जेहि सेवहिं तासों कवन बिरोध ॥ ४८(ख) ॥
॥ मासपारायण, पचीसवाँ विश्राम ॥