तपस्विनी से भेंट
दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा । पूछें निज बृत्तांत सुनावा ॥
तेहिं तब कहा करहु जल पाना । खाहु सुरस सुंदर फल नाना ॥१॥
मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए । तासु निकट पुनि सब चलि आए ॥
तेहिं सब आपनि कथा सुनाई । मैं अब जाब जहाँ रघुराई ॥२॥
मूदहु नयन बिबर तजि जाहू । पैहहु सीतहि जनि पछिताहू ॥
नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा । ठाढ़े सकल सिंधु कें तीरा ॥३॥
सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा । जाइ कमल पद नाएसि माथा ॥
नाना भाँति बिनय तेहिं कीन्ही । अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही ॥४॥
(दोहा)
बदरीबन कहुँ सो गई प्रभु अग्या धरि सीस ।
उर धरि राम चरन जुग जे बंदत अज ईस ॥ २५ ॥