सती का देहत्याग का निर्णय
(चौपाई)
नित नव सोचु सतीं उर भारा । कब जैहउँ दुख सागर पारा ॥
मैं जो कीन्ह रघुपति अपमाना । पुनिपति बचनु मृषा करि जाना ॥१॥
सो फलु मोहि बिधाताँ दीन्हा । जो कछु उचित रहा सोइ कीन्हा ॥
अब बिधि अस बूझिअ नहि तोही । संकर बिमुख जिआवसि मोही ॥२॥
कहि न जाई कछु हृदय गलानी । मन महुँ रामाहि सुमिर सयानी ॥
जौ प्रभु दीनदयालु कहावा । आरती हरन बेद जसु गावा ॥३॥
तौ मैं बिनय करउँ कर जोरी । छूटउ बेगि देह यह मोरी ॥
जौं मोरे सिव चरन सनेहू । मन क्रम बचन सत्य ब्रतु एहू ॥४॥
(दोहा)
तौ सबदरसी सुनिअ प्रभु करउ सो बेगि उपाइ ।
होइ मरनु जेही बिनहिं श्रम दुसह बिपत्ति बिहाइ ॥ ५९(क) ॥
(सोरठा)
जलु पय सरिस बिकाइ देखहु प्रीति कि रीति भलि ।
बिलग होइ रसु जाइ कपट खटाई परत पुनि ॥ ५९(ख) ॥