श्रीराम की अवस्था देखकर पार्वती द्विधा में
(चौपाई)
बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी । सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी ॥
खोजइ सो कि अग्य इव नारी । ग्यानधाम श्रीपति असुरारी ॥१॥
संभुगिरा पुनि मृषा न होई । सिव सर्बग्य जान सबु कोई ॥
अस संसय मन भयउ अपारा । होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा ॥२॥
जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी । हर अंतरजामी सब जानी ॥
सुनहि सती तव नारि सुभाऊ । संसय अस न धरिअ उर काऊ ॥३॥
जासु कथा कुभंज रिषि गाई । भगति जासु मैं मुनिहि सुनाई ॥
सोउ मम इष्टदेव रघुबीरा । सेवत जाहि सदा मुनि धीरा ॥४॥
(छंद)
मुनि धीर जोगी सिद्ध संतत बिमल मन जेहि ध्यावहीं ।
कहि नेति निगम पुरान आगम जासु कीरति गावहीं ॥
सोइ रामु ब्यापक ब्रह्म भुवन निकाय पति माया धनी ।
अवतरेउ अपने भगत हित निजतंत्र नित रघुकुलमनि ॥
(सोरठा)
लाग न उर उपदेसु जदपि कहेउ सिवँ बार बहु ।
बोले बिहसि महेसु हरिमाया बलु जानि जियँ ॥ ५१ ॥