ब्राह्मणों के शाप से प्रतापभानु अगले जन्म में रावण हुआ
(चौपाई)
काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा । भयउ निसाचर सहित समाजा ॥
दस सिर ताहि बीस भुजदंडा । रावन नाम बीर बरिबंडा ॥१॥
भूप अनुज अरिमर्दन नामा । भयउ सो कुंभकरन बलधामा ॥
सचिव जो रहा धरमरुचि जासू । भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू ॥२॥
नाम बिभीषन जेहि जग जाना । बिष्नुभगत बिग्यान निधाना ॥
रहे जे सुत सेवक नृप केरे । भए निसाचर घोर घनेरे ॥३॥
कामरूप खल जिनस अनेका । कुटिल भयंकर बिगत बिबेका ॥
कृपा रहित हिंसक सब पापी । बरनि न जाहिं बिस्व परितापी ॥४॥
(दोहा)
उपजे जदपि पुलस्त्यकुल पावन अमल अनूप ।
तदपि महीसुर श्राप बस भए सकल अघरूप ॥ १७६ ॥