Sunday, 17 November, 2024

Ram kill Khar-Dushan

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Ram kill Khar-Dushan

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श्रीराम द्वारा खर-दूषण का संहार
 
(छंद)
तब चले जान बबान कराल । फुंकरत जनु बहु ब्याल ॥
कोपेउ समर श्रीराम । चले बिसिख निसित निकाम ॥
अवलोकि खरतर तीर । मुरि चले निसिचर बीर ॥
भए क्रुद्ध तीनिउ भाइ । जो भागि रन ते जाइ ॥
तेहि बधब हम निज पानि । फिरे मरन मन महुँ ठानि ॥
 
आयुध अनेक प्रकार । सनमुख ते करहिं प्रहार ॥
रिपु परम कोपे जानि । प्रभु धनुष सर संधानि ॥
छाँड़े बिपुल नाराच । लगे कटन बिकट पिसाच ॥
उर सीस भुज कर चरन । जहँ तहँ लगे महि परन ॥
 
चिक्करत लागत बान । धर परत कुधर समान ॥
भट कटत तन सत खंड । पुनि उठत करि पाषंड ॥
नभ उड़त बहु भुज मुंड । बिनु मौलि धावत रुंड ॥
खग कंक काक सृगाल । कटकटहिं कठिन कराल ॥
 
कटकटहिं ज़ंबुक भूत प्रेत पिसाच खर्पर संचहीं ।
बेताल बीर कपाल ताल बजाइ जोगिनि नंचहीं ॥
रघुबीर बान प्रचंड खंडहिं भटन्ह के उर भुज सिरा ।
जहँ तहँ परहिं उठि लरहिं धर धरु धरु करहिं भयकर गिरा ॥
 
अंतावरीं गहि उड़त गीध पिसाच कर गहि धावहीं ।
संग्राम पुर बासी मनहुँ बहु बाल गुड़ी उड़ावहीं ॥
मारे पछारे उर बिदारे बिपुल भट कहँरत परे ।
अवलोकि निज दल बिकल भट तिसिरादि खर दूषन फिरे ॥
 
सर सक्ति तोमर परसु सूल कृपान एकहि बारहीं ।
करि कोप श्रीरघुबीर पर अगनित निसाचर डारहीं ॥
प्रभु निमिष महुँ रिपु सर निवारि पचारि डारे सायका ।
दस दस बिसिख उर माझ मारे सकल निसिचर नायका ॥
 
महि परत उठि भट भिरत मरत न करत माया अति घनी ।
सुर डरत चौदह सहस प्रेत बिलोकि एक अवध धनी ॥
सुर मुनि सभय प्रभु देखि मायानाथ अति कौतुक कर यो ।
देखहि परसपर राम करि संग्राम रिपुदल लरि मर यो ॥
 
(दोहा) 
राम राम कहि तनु तजहिं पावहिं पद निर्बान ।
करि उपाय रिपु मारे छन महुँ कृपानिधान ॥ २०(क) ॥
 
हरषित बरषहिं सुमन सुर बाजहिं गगन निसान ।
अस्तुति करि करि सब चले सोभित बिबिध बिमान ॥ २०(ख) ॥

 

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