बालि का नाश करने की राम की हैयाधारण
नात बालि अरु मैं द्वौ भाई । प्रीति रही कछु बरनि न जाई ॥
मय सुत मायावी तेहि नाऊँ । आवा सो प्रभु हमरें गाऊँ ॥१॥
अर्ध राति पुर द्वार पुकारा । बाली रिपु बल सहै न पारा ॥
धावा बालि देखि सो भागा । मैं पुनि गयउँ बंधु सँग लागा ॥२॥
गिरिबर गुहाँ पैठ सो जाई । तब बालीं मोहि कहा बुझाई ॥
परिखेसु मोहि एक पखवारा । नहिं आवौं तब जानेसु मारा ॥
मास दिवस तहँ रहेउँ खरारी । निसरी रुधिर धार तहँ भारी ॥
बालि हतेसि मोहि मारिहि आई । सिला देइ तहँ चलेउँ पराई ॥४॥
मंत्रिन्ह पुर देखा बिनु साईं । दीन्हेउ मोहि राज बरिआई ॥
बालि ताहि मारि गृह आवा । देखि मोहि जियँ भेद बढ़ावा ॥५॥
रिपु सम मोहि मारेसि अति भारी । हरि लीन्हेसि सर्बसु अरु नारी ॥
ताकें भय रघुबीर कृपाला । सकल भुवन मैं फिरेउँ बिहाला ॥६॥
इहाँ साप बस आवत नाहीं । तदपि सभीत रहउँ मन माहीँ ॥
सुनि सेवक दुख दीनदयाला । फरकि उठीं द्वै भुजा बिसाला ॥७॥
(दोहा)
सुनु सुग्रीव मारिहउँ बालिहि एकहिं बान ।
ब्रम्ह रुद्र सरनागत गएँ न उबरिहिं प्रान ॥ ६ ॥