श्री रामस्तुति
यह सुभ संभु उमा संबादा । सुख संपादन समन बिषादा ॥
भव भंजन गंजन संदेहा । जन रंजन सज्जन प्रिय एहा ॥१॥
राम उपासक जे जग माहीं । एहि सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं ॥
रघुपति कृपाँ जथामति गावा । मैं यह पावन चरित सुहावा ॥२॥
एहिं कलिकाल न साधन दूजा । जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा ॥
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि । संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि ॥३॥
जासु पतित पावन बड़ बाना । गावहिं कबि श्रुति संत पुराना ॥
ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई । राम भजें गति केहिं नहिं पाई ॥४॥
(छंद)
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना ।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना ॥
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे ।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं ।
कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं ॥
सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै ।
दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्रीरघुबर हरै ॥
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो ।
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को ॥
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूँ ।
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ ॥
(दोहा)
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर ।
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥ १३०(क) ॥
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभहि प्रिय जिमि दाम ।
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ॥ १३०(ख) ॥