Tuesday, 12 November, 2024

Ram warn Sita about possible dangers

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Ram warn Sita about possible dangers

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राम सीता को वन के कष्टों से वाकिफ करते है    
 
मैं पुनि पुत्रबधू प्रिय पाई । रूप रासि गुन सील सुहाई ॥
नयन पुतरि करि प्रीति बढ़ाई । राखेउँ प्रान जानिकिहिं लाई ॥१॥
 
कलपबेलि जिमि बहुबिधि लाली । सींचि सनेह सलिल प्रतिपाली ॥
फूलत फलत भयउ बिधि बामा । जानि न जाइ काह परिनामा ॥२॥
 
पलँग पीठ तजि गोद हिंड़ोरा । सियँ न दीन्ह पगु अवनि कठोरा ॥
जिअनमूरि जिमि जोगवत रहऊँ । दीप बाति नहिं टारन कहऊँ ॥३॥
 
सोइ सिय चलन चहति बन साथा । आयसु काह होइ रघुनाथा ।
चंद किरन रस रसिक चकोरी । रबि रुख नयन सकइ किमि जोरी ॥४॥
 
(दोहा) 
करि केहरि निसिचर चरहिं दुष्ट जंतु बन भूरि ।
बिष बाटिकाँ कि सोह सुत सुभग सजीवनि मूरि ॥ ५९ ॥

 

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