श्रीराम के आगमन से प्रकृति प्रसन्न केरि केहरि कपि कोल कुरंगा । बिगतबैर बिचरहिं सब संगा ॥ फिरत अहेर राम छबि देखी । होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी ॥१॥ बिब...
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રામાયણ
02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 138
02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 139
श्रीराम के आगमन से प्रकृति प्रसन्न नयनवंत रघुबरहि बिलोकी । पाइ जनम फल होहिं बिसोकी ॥ परसि चरन रज अचर सुखारी । भए परम पद के अधिकारी ॥१॥ सो बनु सैलु ...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 166
कौशल्या ने भरत को ढाढस बँधाई मुख प्रसन्न मन रंग न रोषू । सब कर सब बिधि करि परितोषू ॥ चले बिपिन सुनि सिय सँग लागी । रहइ न राम चरन अनुरागी ॥१॥ सुनतहि...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 180
मै राजगादी के लिए योग्य नहीं – भरत कैकेई भव तनु अनुरागे । पाँवर प्रान अघाइ अभागे ॥ जौं प्रिय बिरहँ प्रान प्रिय लागे । देखब सुनब बहुत अब आगे ॥...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 181
मै राजगादी के लिए योग्य नहीं – भरत कैकइ सुअन जोगु जग जोई । चतुर बिरंचि दीन्ह मोहि सोई ॥ दसरथ तनय राम लघु भाई । दीन्हि मोहि बिधि बादि बड़ाई ॥१॥...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 209
भरत के रामप्रेम की भारद्वाज मुनि ने प्रसंशा की नव बिधु बिमल तात जसु तोरा । रघुबर किंकर कुमुद चकोरा ॥ उदित सदा अँथइहि कबहूँ ना । घटिहि न जग नभ दिन द...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 210
भरत के रामप्रेम की भारद्वाज मुनि ने प्रसंशा की कीरति बिधु तुम्ह कीन्ह अनूपा । जहँ बस राम पेम मृगरूपा ॥ तात गलानि करहु जियँ जाएँ । डरहु दरिद्रहि पार...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 212
भरत अपनी व्यथा व्यक्त करता है एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती । भूख न बासर नीद न राती ॥ एहि कुरोग कर औषधु नाहीं । सोधेउँ सकल बिस्व मन माहीं ॥१॥ मातु कुमत...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 214
भरद्वाज मुनि द्वारा रसाले का स्वागत रिधि सिधि सिर धरि मुनिबर बानी । बड़भागिनि आपुहि अनुमानी ॥ कहहिं परसपर सिधि समुदाई । अतुलित अतिथि राम लघु भाई ॥१॥...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 232
श्रीराम लक्ष्मण को धीरज रखने के लिए कहते है तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गिलई । गगनु मगन मकु मेघहिं मिलई ॥ गोपद जल बूड़हिं घटजोनी । सहज छमा बरु छाड़ै छोनी...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 262
मैं ही सर्व अनर्थो का मूल हूँ – भरत भूपति मरन पेम पनु राखी । जननी कुमति जगतु सबु साखी ॥देखि न जाहि बिकल महतारी । जरहिं दुसह जर पुर नर नारी ॥१...
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02-05-2023
Ayodhya Kand Doha 280
वनवासीओं का आतिथ्य एहि बिधि बासर बीते चारी । रामु निरखि नर नारि सुखारी ॥ दुहु समाज असि रुचि मन माहीं । बिनु सिय राम फिरब भल नाहीं ॥१॥ सीता राम संग...
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