साधु राजा को ब्रह्मशाप के अलावा अमरता का वरदान देता है
(चौपाई)
तातें मै तोहि बरजउँ राजा । कहें कथा तव परम अकाजा ॥
छठें श्रवन यह परत कहानी । नास तुम्हार सत्य मम बानी ॥१॥
यह प्रगटें अथवा द्विजश्रापा । नास तोर सुनु भानुप्रतापा ॥
आन उपायँ निधन तव नाहीं । जौं हरि हर कोपहिं मन माहीं ॥२॥
सत्य नाथ पद गहि नृप भाषा । द्विज गुर कोप कहहु को राखा ॥
राखइ गुर जौं कोप बिधाता । गुर बिरोध नहिं कोउ जग त्राता ॥३॥
जौं न चलब हम कहे तुम्हारें । होउ नास नहिं सोच हमारें ॥
एकहिं डर डरपत मन मोरा । प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा ॥४॥
(दोहा)
होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ ।
तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू न देखउँ कोउँ ॥ १६६ ॥