सीताराम तथा रामभक्तो को वंदन
(चौपाई)
कपिपति रीछ निसाचर राजा । अंगदादि जे कीस समाजा ॥
बंदउँ सब के चरन सुहाए । अधम सरीर राम जिन्ह पाए ॥१॥
रघुपति चरन उपासक जेते । खग मृग सुर नर असुर समेते ॥
बंदउँ पद सरोज सब केरे । जे बिनु काम राम के चेरे ॥२॥
सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनिबर बिग्यान बिसारद ॥
प्रनवउँ सबहिं धरनि धरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा ॥३॥
जनकसुता जग जननि जानकी । अतिसय प्रिय करुना निधान की ॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ । जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ ॥४॥
पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदउँ सब लायक ॥
राजिवनयन धरें धनु सायक । भगत बिपति भंजन सुख दायक ॥५॥
(दोहा)
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न ।
बदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खिन्न ॥ १८ ॥