उमा के लिए महेश सुयोग्य वर – नारद वचन
(चौपाई)
सुरसरि जल कृत बारुनि जाना । कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना ॥
सुरसरि मिलें सो पावन जैसें । ईस अनीसहि अंतरु तैसें ॥१॥
संभु सहज समरथ भगवाना । एहि बिबाहँ सब बिधि कल्याना ॥
दुराराध्य पै अहहिं महेसू । आसुतोष पुनि किएँ कलेसू ॥२॥
जौं तपु करै कुमारि तुम्हारी । भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी ॥
जद्यपि बर अनेक जग माहीं । एहि कहँ सिव तजि दूसर नाहीं ॥३॥
बर दायक प्रनतारति भंजन । कृपासिंधु सेवक मन रंजन ॥
इच्छित फल बिनु सिव अवराधे । लहिअ न कोटि जोग जप साधें ॥४॥
(दोहा)
अस कहि नारद सुमिरि हरि गिरिजहि दीन्हि असीस ।
होइहि यह कल्यान अब संसय तजहु गिरीस ॥ ७० ॥