शिव-पार्वती प्रसंग सुनकर भरद्वाज हर्षित
(चौपाई)
संभु चरित सुनि सरस सुहावा । भरद्वाज मुनि अति सुख पावा ॥
बहु लालसा कथा पर बाढ़ी । नयनन्हि नीरु रोमावलि ठाढ़ी ॥१॥
प्रेम बिबस मुख आव न बानी । दसा देखि हरषे मुनि ग्यानी ॥
अहो धन्य तव जन्मु मुनीसा । तुम्हहि प्रान सम प्रिय गौरीसा ॥२॥
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं । रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं ॥
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू । राम भगत कर लच्छन एहू ॥३॥
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ॥
पनु करि रघुपति भगति देखाई । को सिव सम रामहि प्रिय भाई ॥४॥
(दोहा)
प्रथमहिं मै कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार ।
सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार ॥ १०४ ॥