सुग्रीव राम को मिलने चला
चरन नाइ सिरु बिनती कीन्ही । लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही ॥
क्रोधवंत लछिमन सुनि काना । कह कपीस अति भयँ अकुलाना ॥१॥
सुनु हनुमंत संग लै तारा । करि बिनती समुझाउ कुमारा ॥
तारा सहित जाइ हनुमाना । चरन बंदि प्रभु सुजस बखाना ॥२॥
करि बिनती मंदिर लै आए । चरन पखारि पलँग बैठाए ॥
तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा । गहि भुज लछिमन कंठ लगावा ॥३॥
नाथ बिषय सम मद कछु नाहीं । मुनि मन मोह करइ छन माहीं ॥
सुनत बिनीत बचन सुख पावा । लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा ॥४॥
पवन तनय सब कथा सुनाई । जेहि बिधि गए दूत समुदाई ॥५॥
(दोहा)
हरषि चले सुग्रीव तब अंगदादि कपि साथ ।
रामानुज आगें करि आए जहँ रघुनाथ ॥ २० ॥