Thursday, 14 November, 2024

Sumantra reach Ayodhya

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सुमंत्र अयोध्या पहूँचा
 
एहि बिधि करत पंथ पछितावा । तमसा तीर तुरत रथु आवा ॥
बिदा किए करि बिनय निषादा । फिरे पायँ परि बिकल बिषादा ॥१॥
 
पैठत नगर सचिव सकुचाई । जनु मारेसि गुर बाँभन गाई ॥
बैठि बिटप तर दिवसु गवाँवा । साँझ समय तब अवसरु पावा ॥२॥
 
अवध प्रबेसु कीन्ह अँधिआरें । पैठ भवन रथु राखि दुआरें ॥
जिन्ह जिन्ह समाचार सुनि पाए । भूप द्वार रथु देखन आए ॥३॥
 
रथु पहिचानि बिकल लखि घोरे । गरहिं गात जिमि आतप ओरे ॥
नगर नारि नर ब्याकुल कैंसें । निघटत नीर मीनगन जैंसें ॥४॥
 
(दोहा)    
सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु ।
भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु ॥ १४७ ॥

 

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