Vasistha endorse Dashratha’s proposal
By-Gujju01-05-2023
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महाराजा दशरथ के प्रस्ताव को वशिष्ठ की संमति
सब बिधि गुरु प्रसन्न जियँ जानी । बोलेउ राउ रहँसि मृदु बानी ॥
नाथ रामु करिअहिं जुबराजू । कहिअ कृपा करि करिअ समाजू ॥१॥
मोहि अछत यहु होइ उछाहू । लहहिं लोग सब लोचन लाहू ॥
प्रभु प्रसाद सिव सबइ निबाहीं । यह लालसा एक मन माहीं ॥२॥
पुनि न सोच तनु रहउ कि जाऊ । जेहिं न होइ पाछें पछिताऊ ॥
सुनि मुनि दसरथ बचन सुहाए । मंगल मोद मूल मन भाए ॥३॥
सुनु नृप जासु बिमुख पछिताहीं । जासु भजन बिनु जरनि न जाहीं ॥
भयउ तुम्हार तनय सोइ स्वामी । रामु पुनीत प्रेम अनुगामी ॥४॥
(दोहा)
बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु ।
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु ॥ ४ ॥