Monday, 4 November, 2024

Bal Kand Doha 203

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Bal Kand  							Doha 203

Bal Kand Doha 203

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कुंवरो की बाललीलाओं का वर्णन
 
(चौपाई)
बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा । अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा ॥
कछुक काल बीतें सब भाई । बड़े भए परिजन सुखदाई ॥१॥

चूड़ाकरन कीन्ह गुरु जाई । बिप्रन्ह पुनि दछिना बहु पाई ॥
परम मनोहर चरित अपारा । करत फिरत चारिउ सुकुमारा ॥२॥

मन क्रम बचन अगोचर जोई । दसरथ अजिर बिचर प्रभु सोई ॥
भोजन करत बोल जब राजा । नहिं आवत तजि बाल समाजा ॥३॥

कौसल्या जब बोलन जाई । ठुमकु ठुमकु प्रभु चलहिं पराई ॥
निगम नेति सिव अंत न पावा । ताहि धरै जननी हठि धावा ॥४॥

धूरस धूरि भरें तनु आए । भूपति बिहसि गोद बैठाए ॥५॥

(दोहा)
भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ ॥ २०३ ॥

 

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