बारात का वर्णन
(चौपाई)
सहित बसिष्ठ सोह नृप कैसें । सुर गुर संग पुरंदर जैसें ॥
करि कुल रीति बेद बिधि राऊ । देखि सबहि सब भाँति बनाऊ ॥१॥
सुमिरि रामु गुर आयसु पाई । चले महीपति संख बजाई ॥
हरषे बिबुध बिलोकि बराता । बरषहिं सुमन सुमंगल दाता ॥२॥
भयउ कोलाहल हय गय गाजे । ब्योम बरात बाजने बाजे ॥
सुर नर नारि सुमंगल गाई । सरस राग बाजहिं सहनाई ॥३॥
घंट घंटि धुनि बरनि न जाहीं । सरव करहिं पाइक फहराहीं ॥
करहिं बिदूषक कौतुक नाना । हास कुसल कल गान सुजाना ॥४॥
(दोहा)
तुरग नचावहिं कुँअर बर अकनि मृदंग निसान ॥
नागर नट चितवहिं चकित डगहिं न ताल बँधान ॥ ३०२ ॥