महाराजा दशरथ गौदान करते है
(चौपाई)
दंड प्रनाम सबहि नृप कीन्हे । पूजि सप्रेम बरासन दीन्हे ॥
चारि लच्छ बर धेनु मगाई । कामसुरभि सम सील सुहाई ॥१॥
सब बिधि सकल अलंकृत कीन्हीं । मुदित महिप महिदेवन्ह दीन्हीं ॥
करत बिनय बहु बिधि नरनाहू । लहेउँ आजु जग जीवन लाहू ॥२॥
पाइ असीस महीसु अनंदा । लिए बोलि पुनि जाचक बृंदा ॥
कनक बसन मनि हय गय स्यंदन । दिए बूझि रुचि रबिकुलनंदन ॥३॥
चले पढ़त गावत गुन गाथा । जय जय जय दिनकर कुल नाथा ॥
एहि बिधि राम बिआह उछाहू । सकइ न बरनि सहस मुख जाहू ॥४॥
(दोहा)
बार बार कौसिक चरन सीसु नाइ कह राउ ।
यह सबु सुखु मुनिराज तव कृपा कटाच्छ पसाउ ॥ ३३१ ॥