महाराजा दशरथ रानीओं को नववधूओं की देखभाल करने के लिए कहते है
(चौपाई)
मंगलगान करहिं बर भामिनि । भै सुखमूल मनोहर जामिनि ॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए । स्त्रग सुगंध भूषित छबि छाए ॥१॥
रामहि देखि रजायसु पाई । निज निज भवन चले सिर नाई ॥
प्रेम प्रमोद बिनोदु बढ़ाई । समउ समाजु मनोहरताई ॥२॥
कहि न सकहि सत सारद सेसू । बेद बिरंचि महेस गनेसू ॥
सो मै कहौं कवन बिधि बरनी । भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी ॥३॥
नृप सब भाँति सबहि सनमानी । कहि मृदु बचन बोलाई रानी ॥
बधू लरिकनीं पर घर आईं । राखेहु नयन पलक की नाई ॥४॥
(दोहा)
लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ ।
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ ॥ ३५५ ॥